
मौजूदा समय में हम जिस दौर से गुजर रहे है, आज न केवल भारत बल्कि अमेरिका सहित सम्पूर्ण विश्व हिंसा व आतंकवाद से प्रभावित है| सीरिया, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, ईराक, बांग्लादेश, फ़्रांस, रूस में आये दिन धर्म, जाति व सम्प्रदाय के नाम पर बेगुनाहों का कत्लेआम हो रहा है| ऐसे समय में अंतरधार्मिक संवाद की बहुत आवश्यकता है, क्योंकि हिंसा और आतंकवाद किसी समस्या का समाधान नहीं है| हिंसा प्रतिहिंसा को जन्म देती है|
धर्म हमें जोड़ना सिखाता है तोड़ना नहीं| धर्म के क्षेत्र में हिंसा, घृणा और नफरत का कोई स्थान नहीं हो सकता| संवाद के द्वारा, वार्ता के द्वारा हर समस्या को बैठ कर सुलझाया जा सकता है| उसके लिए सबसे पहले जरूरी है, हम अपने अस्तित्व की तरह दूसरों के अस्तित्व का, विचारों का सम्मान करना सीखें| मतभेद हो सकते है किन्तु उसे मनभेद में न बदले| भारतीय संस्कृति बहुलतावादी संस्कृति है| अनेकता में एकता उसकी मौलिक विशेषता है| सर्वधर्म संवाद इसका मूल मंत्र है| यही से अहिंसा, शांति और सद्भावना का शुभारम्भ होता है| हम सभी विकास चाहते है, समृद्धि चाहते है| विकास व शांति का गहरा सम्बन्ध है| धर्मगुरु, राजनेता व समाज के विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख जब एक मंच से शांति व सद्भावना का सन्देश देंगे तो निश्चित रूप से इसका प्रभाव होगा|
धर्म की प्रासंगिकता एक व्यक्ति की मुक्ति में ही नहीं है। धर्म की प्रासंगिकता एवं प्रयोजनशीलता शान्ति, व्यवस्था, स्वतंत्रता, समता, प्रगति एवं विकास से सम्बन्धित समाज सापेक्ष परिस्थितियों के निर्माण में भी निहित है। धर्म का सम्बन्ध आचरण से है। धर्म आचरणमूलक है। धर्म का एक अहम् अंग दर्शन है| दर्शन मार्ग दिखाता है, धर्म की प्रेरणा से हम उस मार्ग पर बढ़ते हैं। हम किस प्रकार का आचरण करें यह ज्ञान दर्शन से प्राप्त होता है। जिस समाज में दर्शन एवं धर्म में सामंजस्य रहता है, ज्ञान एवं क्रिया में अनुरूपता होती है, उस समाज में शान्ति होती है तथा सदस्यों में परस्पर मैत्री- भाव बना रहता है|
धर्म साधना की अपेक्षा रखता है। धर्म के साधक को राग-द्वेषरहित होना होता है। प्रत्येक धर्म के ऋषि, मुनि, पैगम्बर, संत, महात्मा आदि तपस्वियों ने धर्म को अपनी जिन्दगी में उतारा। उन लोगों ने धर्म को ओढ़ा नहीं अपितु जिया। धर्म के वास्तविक स्वरूप को आचरण में उतारना सरल कार्य नहीं है| महापुरुष ही सच्ची साधना कर पाते है| धार्मिक व्यक्ति का उद्देश्य धर्म के अनुसार अपना चरित्र निर्मित करना होना चाहिए।
विश्व के सभी धर्मों में नैतिक मूल्यों का प्रतिपादन है, मानव मूल्यों की स्थापना है, मानव-जाति में सदाचारण के प्रसार का प्रयास है। इन नैतिक मूल्यों, सद्गुणों एवं सदाचारों को व्यक्त करने वाली शब्दावली में भिन्नता होने के कारण बाह्य धरातल पर हमें धर्मों की साधना में अंतर प्रतीत होता है, तात्विक दृष्टि से सभी धर्म मनुष्य के सद्पक्ष को उजागर करते हैं, सामाजिक जीवन में शान्ति, बन्धुत्व, प्रेम, अहिंसा एवं समतामूलक विकास के पक्षधर हैं। सर्वधर्म समभाव की उदात्त चेतना का विकास सम्भव है। मतवादों का भेद हमारे ज्ञान एवं प्रतिपादन शक्ति की अपूर्णता के कारण है। प्रत्येक तत्व पर अनेक दृष्टियों से विचार सम्भव है। एकांगी प्रतिपादन के कारण वे परस्पर विरोधी प्रतीत होती हैं। प्रतीत होने वाले विरोधों का शमन सम्भव है। प्रतीयमान विरोधी दर्शनों में समन्वय स्थापित किया जा सकता है।
भगवान महावीर के दर्शन पर आधारित जैन धर्म अहिंसा, अनेकांत व अपरिग्रह जैसे सिद्धांतों पर आधारित है| यह सिद्धांत एक जाति व धर्म तक सीमित नहीं है| इनको समझने और जीवन में उतरने से अनेक वैश्विक समस्याओं का समाधान मुमकिन है| भगवान महावीर दर्शन को अपनाने से समाज में शांति व सद्भावना स्थापित कर मानवता को पूर्ण विकास की ओर ले जा सकते है| विकास व समृद्धि के लिए समाज में शांति व सद्भावना का वातावरण जरूरी होता है| अहिंसा विश्व संस्था पिछले 11 वर्षों से धर्म को समाज सेवा से जोड़कर सामाजिक कुरीतियों के निवारण के लिए निरंतर देश व दुनिया में प्रयासरत रहती है| संस्था द्वारा समय समय पर सर्वधर्म सम्मेलनों, पर्यावरण संरक्षण अभियान, कन्या भ्रूण हत्या व नशामुक्ति के खिलाफ अभियान संचालित रहते है|
सर्वधर्म संवाद के द्वारा विश्व शांति व सद्भावना